बिहार चुनाव: प्रचंड जीत के बाद भाजपा मुख्यालय से पीएम मोदी ने कहा कि लोहा लोहे को काटता है।


बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की शानदार चुनावी जीत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राज्य में बरकरार लोकप्रियता की बदौलत मिली है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और अन्य दलों के गठबंधन को 20 साल पहले खत्म हुए अपने शासन की अलोकप्रिय याद का खामियाजा भुगतना पड़ा। एनडीए ने महिलाओं को एक क्षैतिज वोटिंग ब्लॉक के रूप में तैयार किया, यहां तक कि पूरी बेशर्मी से चुनाव की पूर्व संध्या पर एक नयी नकद लाभ योजना शुरू कर दी। महागठबंधन अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद, यादवों और मुस्लिमों के एक संकीर्ण मंच होने की धारणा से पार नहीं पा सका। नीतीश कुमार चुनाव अभियान में एक कमजोर पड़ते मुखिया के रूप में उतरे, लेकिन उन्होंने किस्मत पलटते हुए बिहार की राजनीति में अपनी केंद्रीयता पुख्ता की और एनडीए की जीत का आधार बने। भाजपा वोटों और सीटों के मामले में जनता दल (यूनाइटेड) से आगे है, लेकिन बिहार के दिल तक पहुंचने का उसका रास्ता अब भी नीतीश कुमार से गुजरता है। ऐसा लगता है कि एनडीए को महिला मतदान में ठीकठाक बढ़ोतरी तथा नकद ट्रांसफर और स्वरोजगार सब्सिडी के जरिए महिलाओं व आर्थिक पिछड़ा वर्ग परिवारों पर केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं का फायदा मिला है। साल 2005 से लगातार सत्ता में रहने के बावजूद, नीतीश कुमार ने अपनी पैठ मजबूत भी की। दोस्तों नमस्कार मेरा नाम प्रवीण मिश्रा राल्ही है और मैं राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्र आयकर मीडिया का प्रधान-संपादक हू। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों ने विकसित बिहार के लिए मतदान किया है। बिहार के लोगों ने समृद्ध बिहार के लिए मतदान किया है। मैंने चुनाव प्रचार के दौरान, बिहार की जनता से रिकॉर्ड वोटिंग का आग्रह किया था और बिहार के लोगों ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। मैंने बिहार के लोगों से एनडीए को प्रचंड विजय दिलाने का आग्रह किया था, बिहार की जनता ने मेरा ये आग्रह भी माना। बिहार ने 2010 के बाद का सबसे बड़ा जनादेश एनडीए को दिया है। मैं बहुत विनम्रता से एनडीए के सभी दलों की ओर से बिहार की महान जनता का आभार व्यक्त करता हूं। मैं बिहार की महान जनता को आदरपूर्वक नमन करता हूं। पीएम मोदी ने कहा कि एक पुरानी कहावत है- लोहा लोहे को काटता है.. बिहार की इस जीत ने नया MY फॉर्मूला दिया, जिसका मतलब है- महिला और यूथ। आज एनडीए उन राज्यों में सत्ता में है, जहां युवाओं की संख्या ज्यादा है। विपक्षी दलों के शीर्ष नेतृत्व ने जानकारी देते हुए कहा कि एक तेजस्वी यादव को हराने के लिए एक प्रधानमंत्री, पांच राज्यों के मुख्यमंत्री, अस्सी मंत्री और देशभर से चार सौ विधायक और सांसद बिहार भेजे गए। भारी धन और प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल किया गया। प्रधानमंत्री ने चुनाव से ठीक पहले बिहार की पचहत्तर लाख महिलाओं के खातों में दस हजार रुपए जमा किए और हर सभा में महिलाओं से कहते रहे, ‘अगला पैसा तुरंत भेजूंगा, भाजपा को वोट दो।’ इन सबका नतीजा बिहार में दिख रहा है। बिहार चुनाव भारतीय लोकतंत्र में एक घोटाला है इसलिए मोदी-शाह राज में चुनाव अपना अर्थ खो चुके हैं। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने बिहार में ‘वोट अधिकार यात्रा’ निकाली। इस यात्रा को स्थानीय लोगों का जबरदस्त समर्थन मिला, लेकिन लोगों के मताधिकार का हकीकत में क्या हुआ? यह सवाल अब सबके जेहन में है। बिहार में पिछले पांच सालों से नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक अराजक सरकार थी। ‘पलटूराम’ के नाम से मशहूर नीतीश कुमार पर उनके सहयोगियों का भी भरोसा बचा ही नहीं। उन्हें भूलने की बीमारी है। साफ दिख रहा था कि वे सार्वजनिक स्थलों पर असंतुलित जैसा व्यवहार करते थे। अब बिहार विधानसभा में भाजपा को नीतीश कुमार से ज्यादा सीटें मिल गई हैं। क्या भाजपा अपने बयान पर खरी उतरेगी? क्या भाजपा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाकर बिहार पर राज करेगी। बिहार में भाजपा के दो उप मुख्यमंत्री हैं, लेकिन वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं। अगर अब उन्हें वह मौका मिले तो वे नीतीश कुमार को किनारे करके उनकी पार्टी पर कब्जा करने में संकोच नहीं करेंगे। बिहार के नतीजों का देश की राजनीति पर क्या असर होगा? क्या देश की जनता बिहार के नतीजों को स्वीकार करेगी? बिहार के नतीजे से विपक्ष को क्या सीख लेनी चाहिए? मेरा मानना है कि लोकतांत्रिक देश में कानून का शासन होना परम आवश्यक है।

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